उमगा सूर्यमंदिर जिला मुख्यालय से 27 कि0मी0 की दूरी पर अवस्थित है ग्रैण्ड ट्रंक रोड से 1.5 कि0मी0 दक्षिण की ओर एवं देव से 12 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है बिहार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहरों में से एक है
19वीं एवं 20वीं शताब्दी के प्रायः सभी नामचिन पुरातत्ववेताओं ने यहॉ के मंदिर श्रृंखलाओं का सर्वेक्षण किया तथा उसे अपने सर्वेक्षण प्रतिवेदन में महत्वपूर्ण स्थान दिया है मेजर किट्टो ने सन् 1847ई0 श्री कनिंघम ने 1876ई0 जे0डी0 बेगलर ने 1872 ई0 ब्लॉच ने 1902 ई0 में इसका पुरातात्विक सर्वेक्षण किया तथा इसे अपने सर्वेक्षण प्रतिवेदनों में महत्वपूर्ण स्थान दिया
उमगा पहाडी पर कई मंदिर एवं मंदिरों के अवशेष मिलाकर मंदिर ऋखला है इसकी पश्चिमी ढलान पर पूर्वाभिमुख वृहद मंदिर है] जो देव मंदिर के ही समरूप है (इसकी लम्बाई 68.60 फीट x 53 फीट एवं उचॉई 60 फीट) गर्भगृह के अतिरिक्त यहॉ भी मण्डप है जो सुडौल एकाश्मक स्तम्भों के सहारे है मंदिर में प्रवेश करने के बाद द्वार के बांयी तरफ एक शिवलिंग एवं भगवान गणेश की मूर्ति है गर्भगृह में भगवान सूर्य की मूर्ति है मंदिर के दाहिने तरफ एक वृहद शिलालेख है सभी मूर्तियां एवं शिलालेख काले पत्थर से बने है जो पालकालीन मूर्ति कला के उत्कृष्ट नमूने है मेजर किट्टो ने यहॉ के शिलालेख का अध्ययन कर उसका अनुवाद अपने सर्वेक्षण प्रतिवेदन में दिया है इसके
अनुसार इस अभिलेख में उमगा के स्थानीय शासकप्रमुख की वंशावली है जो अपने को चन्द्रवंशी यां सोमवंशी कहते थे इस वंशावली की शुरूआत भूमिपास से प्रारम्भ होकर भैरवेन्द्र तक आती थी राजा भैरवेन्द्र ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी इनके द्वारा मंदिर में कृष्ण बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित करने का उल्लेख है
इस मुख्य मंदिर के अतिरिक्त उमगा पहाड पर कई मंदिर जिनमें प्रमुख सहस्त्र शिवलिंग एवं ध्वंस शिवमंदिर है उमगा पहाड की श्रृंखालाओं पर मंदिर निर्माण की कला एवं तकनीक का भी अध्ययन किया जा सकता है उमगा के मंदिरों का निर्माण यहॉ के स्थानीय पत्थरों से ही किया गया था।
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