मुजफ्फरपुर के बेला औद्योगिक क्षेत्र का कुछ हिस्सा इन दिनों स्वयं उत्पादित बिजली से जगमग हो रहा है। इससे राइस प्लांट चल रहा है। रोज करीब 1.2 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है
जिससे चावल उत्पादन की इकाई चल रही है। पूरे परिसर में भी बिजली की आपूर्ति हो रही है।इससे प्रति घंटे 14 टन की प्रोसेसिंग की जा रही है। धान की भूसी से तैयार बिजली की लागत प्रति यूनिट चार से साढ़े चार रुपये पड़ रही है। जबकि, सरकारी बिजली के लिए प्रति यूनिट छह से सात रुपये देने होते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो भूसी से बनी बिजली 410 से 415 वोल्ट पर आपूर्ति होती है।
वोल्टेज में भी उतार-चढ़ाव का संकट नहीं है। भीमसेरिया एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक व लघु उद्योग भारती के प्रदेश अध्यक्ष श्याम भीमसेरिया ने बताया कि को-जेनरेशन प्लांट की लागत करीब 10 करोड़ रुपये है। तीन से चार साल में प्लांट की कीमत वसूल हो जाएगी। प्लांट में 25 लोगों को अतिरिक्त रोजगार मिल रहा है।बिजली उत्पादन के लिए प्रति घंटे करीब तीन टन भूसी का इस्तेमाल हो रहा है। सरकार की ओर से औद्योगिक क्षेत्र में इस तरह की पहल होनी चाहिए। भीमसेरिया ने बताया कि तमिलनाडु में व्यवसाय संबंधी भ्रमण पर थे। वहां देखा कि धान की भूसी से बिजली उत्पादन हो रहा है। वहां से लौटने पर मिल में अपना प्रोजेक्ट शुरू किया।कहते हैं कि उनका अगला मिशन लोगों को प्रोत्साहित करना है। भूसी वायलर में जलकर पानी के जरिए स्टीम बनाती है। स्टीम के प्रेशर से टरबाइन घूमता है, जिससे डीसी को अल्टरनेटर मशीन के जरिए एसी में परिवर्तित कर बिजली उत्पादन किया जाता है।
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