औरंगाबाद जिला मुख्यालय से अठारह (18)किलोमीटर की दूरी पर देव सूर्यधाम मंदिर अवस्थित है। पुरातात्विक द़ष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मंदिर का शिखर100 फीट उचॉ है। इसका निर्माण चौकोर अलंक़त पाषाण खण्डो को लौह कलैम्प से जोड कर किया गया है। पश्चिमाभिमुख यह मंदिर नागर शैली के मंदिर स्थापत्य शिल्प एवं पाषाण शिल्प का अद्रभुत नमूना है।
मुख्य गर्भग़ह के सामने एकाश्म स्तम्भो के सहारे एक प्रार्थना मण्डप बना है। यदपि ये स्तम्भ अलंक़त नहीं है तथापि इनका शीर्ष एवं आधार सुडौल एवं नैनाभिराम है। मण्डप की छत के मध्य में सतदल कमल है। गर्भग़ह में त्रिकाल सूर्य भगवान के स्परूप हीं तीनों मूर्ति ब्रहमा महेश्वर एवं विष्णु के रूप में स्थापित है। इनके अतिरिक्त मंदिर के बाहर एक विखंडित सूर्यमूर्ति लगभग पॉच फिट मंदिर के अन्दर प्रवेश द्वार के बॉयी ओर उतर के तरफ गणेश भगवान की मूर्ति उसके आगे उमा महेश्वर एवं अन्य कई मूर्तियॉ है। ये मूर्तियॉ काले पत्थर की बनी पालकालीन मूर्ति कला का उत्क़ष्ट नमूना है। पुरातात्विक साक्ष्य एवं मेजर किट्टो के विवरण के अनुसार देव से प्राप्त अभिलेख पर संवत् 1605 (1548 ई0) है। उन्होने यहीं के ब्राहम्णो द्वारा कराये गये अन्य विवरण के अनुसार विक्रम संवत 1293 (1236 ई0) का उल्लेख किया है। मंदिर से पॉच सौ मीटर की दूरी पर सूर्य कुण्ड अवस्थित है। पौराणीक आख्यानों एवं किवदंतियो के अनुसार यह सूर्य कुण्ड मंदिर से प्राचीन एवं मंदिर निर्माण का कारण भी है। राजा जो कुष्ट रोग से ग्रस्त थे शिकार के दौरान सूर्य कुण्ड के जल के स्पर्श मात्र से उनकी ब्याधी दुर हुई और उन्होने यहॉ सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया।
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