कुछ व्यक्ति हिंदू धर्म को यह कह कर कोसते हैं कि यह 21वीं सदी है यह विज्ञान का युग है उन्हें यह मालूम होना चाहिए की धर्म और विज्ञान दोनों दो चीजें हैं तथा दोनों का महत्व अलग-अलग है जहां तर्क है वहां धर्म की सीमा समाप्त हो जाती है ।विज्ञान हमें जहां भौतिकवादी और विलासितापूर्ण जीवन देती है वही धर्म हमें मानसिक शांति एवं परिपूर्णता प्रदान करती है। वर्तमान समय में मानव सभ्यता ने सारी उपलब्धि प्राप्त की है परंतु मानसिक शांति नहीं उसके पीछे यही कारण है कि अपनी चीचली बौद्धिकता के आधार पर धर्म से विमुख होने लगा है आज के परिवेश में जिसे हम संक्रमण काल भी कर सकते हैं धर्म के विरुद्ध लिखने और बोलने की बाढ़ सी आ गई है। जिन्हें देखिए उन्हें सारी समस्याओं का जड़ धर्म में ही दिखता है वह साफ-साफ अपने आप को नास्तिक भी नहीं करना चाहते अपने आप को जबरदस्ती उसी कथित धर्म से जुड़े भी रहना चाहते हैं और खोखला भी करते रहते हैं। मैं मानता हूं की सुधार की गुंजाइश सभी धर्म में होता है तथा सुधार भी अनवरत होते रहते हैं जो कि एक धीमी प्रक्रिया है इसमें त क्षणिक परिवर्तन संभव ही नहीं है मैं पूरे विश्वास से कहता हूं की अन्य धर्मों के समानांतर हिंदू धर्म में इतनी बुराइयां नहीं है हम सुधार के लिए लालायित और उत्सुक रहते है। फिर दुःख होता है उन भटके हुये साथियो से मिलकर जो अपने ही घर जलाने पर तुले हुए है।ये वही लोग है जिन्हें हर परिस्थिति में दोष ही देना आता है।इन्हे भारत के प्राचीन हिंदुत्व शासन वाले काल को ब्लैक डे तथा मध्यकाल मुस्लिम युग स्वर्ण काल नज़र आता है।
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